समाज का कड़वा सच-16

पल भर में मिट जाये हस्ती, फिर कैसा अभिमान, जान बूझकर करता गलती, और बने अनजान, कर्म फल की न चिंता करता, कैसे कैसे करे जतन, तिल तिल कर जोड़े धन को, साथ न जाये कफन, शान ए शौकत रिश्ते नाते, भला किसको दिखाए, जिन रिश्तों की तुम बात करे, वही आग सुलगाये......

कैलाश मेरी मानसिक स्थिति से भली भाँति परिचित था , और खान में हुए वाक्य को देख चुका था , इसलिए मुझसे खुद अस्पताल में रहने का अनुग्रह कर मुझे घर छोड़ गया । मैं जैसे - तैसे घर पहुंचा हि था कि भीरू के ससुर जी के आगमन की सुचना मुझे दरवाजे पर ही मिल गई, भीतर जाकर देखा तो वह कुछ बुजुर्गों को साथ ले मेरे पिताजी के साथ बातचीत में मग्न थे.......

        मुझे देखते ही सभी ने एक प्रश्नवाचक चिन्ह की तरह मेरी ओर निहारा , लेकिन इससे पहले कि उनके मस्तिष्क में और कोई प्रतिक्रिया उभरती कि उसके पहले ही पिताजी ने मुझसे भीरू के पिता का वर्णन पूछ सबकी जिज्ञासा को शांत कर दिया , क्योकि न जाने  क्यों वर्तमान परिवेश में चाहे जिसे देखो , वह सबसे उनका हाल पूछता रहता है , लेकिन वास्तव में , अगर अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाये तो हर कोई सामने वाले के मुँह से उसकी परेशानी ही सुनने की उपेक्षा रखता है ,
              शायद इस बात को सभी मन से न स्वीकारे , लेकिन यह कड़वा सच है , कि यहाँ हर कोई चाहता है , कि सामने वाला अपनी परेशानी बताये , रोये और श्रीमान जी उसे संत्वना दें और अपनी बेतुकी सलाह देकर खुद को ज्ञानी समझे , शायद इसी से अधिकांश लोग को संतुष्टि मिलती है ,

           ना जाने क्यों यहां हर कोई अपनी नकारात्मक सोच को मन के भीतर रख दूसरों की भलाई पूछता  है , या यूँ कहे  जबरन अपने आप को एक सकारात्मक सोच और सुलझे हुए विचारों का व्यक्तित्व दिखाने में लगा रहता है ,जैसे ही उन सभी के पास से आगे बड़ा, भीरु के  ससुर जी मुझे टोकते हुए  तुरंत मेरे पास आकर बोले , आपसे कुछ बात करनी है क्या खोड़ा समय है ?
                उनका ऐसा कहना मुझे बड़ा अजीब सा लगा , और शायद उतना ही अजीब वहाँ उपस्थित लोगों को भी, इसीलिए किसी अनहोनी को भाप मैं वही रुक गया और पूछा जी कहिये आप क्या जानता चाहते है ??कृपया स्पष्ट तौर पर कहिए ...........

तब पलटकर उन्होंने तुरंत जवाब दिया , नहीं बस ऐसे ही , मैं आपसे भीरु की सर्विस सीट को लेकर कुछ जानना चाहता था , उनके इस प्रश्न पर सभी ने उनकी ओर प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ देखा कि आखिर इस समय यह कैसा सवाल????? लेकिन मेरे पिताजी भली भाँति समाज से परिचित थे , और किसी भी प्रकार का मतभेद नहीं चाहते थे , इसीलिए बीच में टोकते हुये बोले , मैं समझ सकता हूँ , कि आपके सवाल का क्या मतलब है ? और आपकी चिन्ता भी जायज है , लेकिन शायद इस सवाल का जवाब उस लड़के से ज्यादा मैं अच्छे से दे सकता हूँ , तब तो वह तुरंत पिताजी के पास वाली कुर्सी पर बैठ गये , और मैं बेफिर्क हो भीतर की ओर जाने लगा , लेकिन तभी पिता का सुक्ष्म इशारा पाकर मैं भी बैठने को मजबूर हो गया, और उनका कहना भी कुछ गलत नहीं था , क्योकि मेरे पिता एक खानकर्मी ही थे , जिन्होंने खान में अपना जीवन जनरल मजदूर से शुरू किया , और अपने बलबूते पर सीनियर वर्क ( एकाउण्टेट ) के पद पर कार्य करते हुए एक सफल रिटायमेंट प्राप्त किया ।

        मैं और भीरु खुद अपनी कई समस्याओं का समाधान उनके अनुभव और रुतबे के कारण उन्हीं से पाते थे , आज भी जब स्थानीय कर्मचारी को कोई समस्या होती है तो उन्हीं पास आकर समाधान पाते, 
        एक चलता फिरता घर,, पिताजी समझाते हुये कहा कि सर्विस सीट में चाहे किसी  का भी नाम रहा हो , वर्तमान में जो भी फण्ड मिलेगा उसमे भीरुके माता - पिता को आधा  और बाकी हिस्सा परिवार को मिलेगा ......

इतना सुनते ही उनके चेहरे पर वही भाव उभरने लगे , जिसे खुद वहाँ पर उपस्थित सभी बुजुर्ग और मेरे पिता देखना चाहते थे , और जैसे ही उनके मुँह से "लेकिन" शब्द निकला तो शायद मेरे पिता जो जवाब की उम्मीद उन्होंने ताउम्र नहीं कि होगी , वहीं उन्हें सुनने को मिला , पिताजी ने स्पष्ट तौर पर उनकी भावनाओं को भाप कहना शुरू किया , मैं जानता हूँ आपके "लेकिन" का कारण और सोच भी , आपको क्यों लगता है, कि पूरा फण्ड सिर्फ भीरु के उस परिवार को दे दिया जाए , जिन्होने मृत्यु के मात्र दो दिन बाद ही घर को दो टुकड़ों में बाँट दिया .....

आखिर किसके लिए कमाया था उसने , कम से कम दसकिर्या तो होने देते , और मैं कहना तो नहीं चाहता लेकिन, मैं जानता हूँ कि आपने भी कोई कम भूमिका नहीं निभाई,,, इन सबमें , क्या चाहते आखिर आप ? सब कुछ तो आपकी बेटी और पोतों के लिए ही तो कमा रखा है , और रही बात दोनों बुजुर्गों की तो उनको तो अभी तक अपने बच्चे के खो जाने का भी यकिन नहीं हैं , क्या करेंगे आप उस दौलत का , और क्या पा लेगें यह सब करके , आखिर क्यों ?

         अपने ही बच्ची का घर बर्बाद करने में तुले  हो , मैं जानता हूँ कि आपने यही सवाल भीरू की चिता को मात्र आग ही लगी थी , उसी समय मेरे बेटे से भी पूछा था जिसका जवाब उस समय न मिला , शायद इसीलिए आप उससे नाराज है , कहाँ से आप इतनी हिम्मत जुटा लेते है , कैसे ससुर है आप , किस बात की कमी हुई आजतक , जिस कारण आपको ऐसा सवाल पूछने को विवश होना पड़ा ,
                     कुछ समझ नहीं आता ,खैर छोडिये जो भी हो , चिन्ता मत करिये , कुछ कम नहीं पड़ेगा , आप अपनी जगह सही और  वो उनके जगह..

           पिता का जवाब सुन सारे बुजुर्ग आत्म संतुष्ट हुए , और ऐसा धमाकेदार जवाब सुन भीरू के ससुर का चेहरा फिका पड़ गया , लेकिन अपनी सोच को छिपाते हुए वो  शांत हो गये और झूठा दिखावा  करने लगा ,
               मैं खुद आश्चर्यचकित था ,कि वाकई इन्हीं रिश्तों के खातिर इन्सान ताउम्र उनको खुश करने में लगा होता है , जो एक पल भर की भी देरी न लगाते , उनकी मौत के बाद लाश की किश्त लगाने चाहे वह इंश्योरेंस का पैसा हो या फिर पेंशन की रकम

क्रमशः......

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